Wednesday, June 25, 2025
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रुद्रपुर विधायक राजकुमार ठुकराल के राजनीतिक भविष्य पर सवाल 

भोंपूराम खबरी, रुद्रपुर।  बीते सितंबर माह में नजूल नीति पर राज्य कैबिनेट बैठक में अध्यादेश लाये जाने के बाद अपनी पीठ थपथपाने वाले रुद्रपुर विधायक राजकुमार ठुकराल के लिए आगे की राह कठिन हो गयी है। प्रदेश के राज्यपाल गुरमीत सिंह द्वारा उक्त अध्यादेश में सुधार करने की टिप्पणी के साथ वापस करने पर प्रदेश सरकार और विशेषकर भाजपा विधायक राजकुमार ठुकराल की खासी किरकिरी हो रही है। यही नहीं, राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि जब विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आचार संहिता लगने में मात्र एक माह का समय शेष है तो नजूल नीति कैसे परवान चढ़ पाएगी।

ज्ञात हो नगर कि लगभग सत्रह सौ एकड़ नजूल भूमि पर तीस हजार से भी अधिक परिवार काबिज हैं। इसमें रम्पुरा, ट्रांजिट कैंप, खेड़ा, भूत बंगला, पहाड़गंज, रेशमबाडी, जगतपुरा, संजय नगर सहित कई अन्य बस्तियां शामिल हैं। यही नहीं पंतनगर औद्योगिक आस्थान सिडकुल की स्थापना के बाद नजूल जमीन पर आकर बसने वाले लोग बीते दो विधानसभा चुनाव में अपना महत्त्व साबित कर चुके हैं। वहीं गौरतलब है कि साल 2017 के विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान से ही राजकुमार ठुकराल लगातार यह कहते रहे आ रहे हैं कि यदि नजूल पर काबिज लोगों को मालिकाना हक़ नहीं मिला तो वह कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे। अब राज्यपाल द्वारा नजूल नीति अध्यादेश को वापस करने से ठुकराल का राजनीतिक भविष्य अंधकारमय लग रहा है। दरअसल उत्तराखंड में 2009 में जारी नजूल नीति को हाईकोर्ट ने 2018 में जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान खारिज कर दिया था। जिससे नजूल पर बसे लोगों को मालिकाना हक मिलने का सपना पूरा नहीं हो पाया था। इसके बाद उत्तराखंड सरकार नजूल मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी पहुंची और वहां मामला अभी लंबित है। सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित होने के बाद भी सरकार विधानसभा चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए नजूल नीति को पास करने का अध्यादेश विधानसभा में लेकर आ गयी जो कि जल्दबाजी में लिया गया निर्णय साबित हुआ है। जानकारों की मानें तो जब तक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, सरकार उस पर अध्यादेश नहीं ला सकती है। साफ़ है कि मात्र वोटरों को लुभाने के लिए यह निर्णय लिया गया।

ठुकराल बीते चार सालों में कई बार नजूल नीति घोषित होने का श्रेय लेने का प्रयास कर चुके हैं। त्रिवेन्द्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री रहते यही प्रचार किया गया तो तीन महीने के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के कुर्सी पर विराजने के बाद भी ठुकराल ने नजूल नीति पास होने को लेकर मिष्ठान वितरण और स्वागत समारोह करवा लिए। इसके बाद पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने और कैबिनेट में अध्यादेश के लिए प्रस्ताव पारित होने पर ठुकराल ने शहर को पोस्टरों और बैनरों से पाट दिया था। लेकिन राज्यपाल की आपत्ति के बाद अब नजूल नीति की घोषणा का लाभ लेने का प्रयास ठुकराल के गले की हड्डी बन गया है। अब अगर आचार संहिता से पूर्व नजूल नीति पास नहीं होती तो ठुकराल को अपनी सौगंध के अनुरूप चुनाव से कदम वापस खींचने होंगे। अन्यथा उन पर झूठ की राजनीति करने का आरोप लगेगा। अलबत्ता ठुकराल के करीबी लोग यह कह रहे हैं कि ठुकराल ने इस आशंका के मद्देनजर पार्टी व पब्लिक फोरम में अपने अनुज संजय ठुकराल को आगे करना शुरू कर दिया था। अपनी सौगंध के अनुसार यदि ठुकराल खुद चुनाव नहीं लड़ते तो ऐसे में वह पार्टी से अपने भाई संजय ठुकराल के लिए टिकट मांग सकते हैं।

कुल मिलाकर नजूल को लेकर ठुकराल की घोषणा के चलते माहौल बहुत रोमांचक हो गया है। अब यह देखने योग्य होगा कि नजूल नीति पास हो पाती है या फिर राजनीतिक जीवन में कोई चुनाव न हारने वाले राजकुमार ठुकराल सक्रिय राजनीति से ससम्मान विदाई लेते हैं।

आम आदमी पार्टी महानगर अध्यक्ष नंदलाल प्रसाद ने कहा है कि भाजपा जनता को झूठे सपने दिखाती है। भाजपा सरकार का झूठ सबके सामने है । भाजपा ने जनता को 5 साल लगातार ठगा है । प्रदेश में सरकार हर क्षेत्र में विफल रही है ।

नंदलाल ने कहा कि आम आदमी नजूल पर अपने मालिकाना हक को लेकर लंबे समय से संघर्षरत हैं लेकिन भाजपा सरकार के जनप्रतिनिधियों ने नजूल भूमि पर मालिकाना हक दिलवाने को झूठे सपने दिखाने का काम किया है। भाजपा सरकार नजूल नीति लाने में विफल हो गई। कहा कि रुद्रपुर के क्षेत्रीय विधायक राजकुमार ठुकराल ने सौगंध खाई थी कि यदि नजूल पर बसे आम आदमी को मालिकाना हक नहीं दिलवा पाए तो वह चुनाव नहीं लड़ेंगे । भाजपा के जनप्रतिनिधियों नजूल नीति पर बिल पारित होते ही श्रेय लेने के लिए आपस में भिड़ गए लेकिन जनता को नजूल भूमि पर उसका मालिकाना हक नहीं दिलवा पाए ।

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