Wednesday, June 25, 2025
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9 साल बाद क्रेन व्यापारी जनकराज के हत्या में शामिल दो हत्यारों को आजीवन कारावास की हुई सजा

भोंपूराम खबरी,रूद्रपुर ।ज़िला मुख्यालय रूद्रपुर के क्रेन व्यापारी जनकराज के हत्याकाणड में साढ़े 9 साल बाद गुरुवार को तृतीय अपर ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश सुश्री रजनी शुक्ला ने दो हत्यारों को आजीवन कारावास और 25-30 हज़ार रुपये जुर्माने की सज़ा सुनाई जबकि एक अभियुक्त को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है ।सहायक ज़िला शासकीय अधिवक्ता लक्ष्मी नारायण पटवा ने बताया कि इन्द्रा चौक सिथत पत्थर चट्टा बिलिडगं निवासी गुगा लाल ने 2-10-2012 की देर रात रूद्रपुर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि रोज़ाना की तरह शाम क़रीब 8 बजे वह अपने पिता जी जनकराज को खाना देने किचछा बाईपास सिथत सिंगला एग्रो इण्डस्ट्रीज गया था पिता जी को खाना देकर पहली मंज़िल पर रह रहे क्रेन आपरेटर त्रिलोक यादव से बातें करने चला गया था। आधा घन्टा बाद उनको पिता जी के चीखने की आवाज़ सुनाई दी तो वे नीचे आये तो देखा कि तीन लोग पिता जी के पेट व गर्दन पर वार कर रहे थे उसने पिता जी को बचाने का प्रयास किया और चीखने लगा तो हमलावरों ने गोली मारने की धमकी दी फिर भी हिम्मत कर वह बचाव के लिए चीखने लगा जिसे सुनकर स्टाफ़ के लोग आ गए यह देखकर हमलावर भागने लगे तो उन्होंने एक हमलावर को दबोच लिया बाकी दो भाग गये,वह पिता जी को तत्काल अस्पताल ले गए जहां डॉक्टरों ने उनको मृत घोषित कर दिया।पकड़े गए मुनेश् पुत्र डौली राम निवासी ग्राम इशानपुर नगला थाना कुन्दरकी ज़िला मुरादाबाद यूपी को पुलिस के हवाले कर दिया जिसने अपने साथियों के नाम मोहित पुत्र ब्रजलाल निवासी ग्राम लतीफ़पुर पसतोरा थाना बहजोई ज़िला मुरादाबाद यूपी तथा जितेन्द्र पुत्र महेन्द्र सिंह निवासी ग्राम नटवारी मढढेया थाना असमोली ज़िला सम्भल यूपी बताया जिनको पुलिस ने अगले ही दिन गिरफ़्तार कर लिया।पुलिस ने अभियुक्तों की निशानदेही पर लूटे गये सामान,नगदी व आलाकतल चाकू बरामद कर लिए।तीनो अभियुक्तों पर तृतीय अपर ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश सुश्री रजनी शुक्ला के न्यायालय में मुक़दमा चला जिसमें एडीजीसी लक्ष्मी नारायण पटवा ने 11 गवाह पेश कर आरोप सिद्ध कर दिया जिसके बाद न्यायाधीश सुश्री रजनी शुक्ला ने मोहित को आजीवन कारावास और 30 हज़ार रुपये जुर्माने की सज़ा सुनाई,मुनेश को आजीवन कारावास और 25 हज़ार रुपये जुर्माने की सज़ा सुनाई जबकि जितेन्द्र को सन्देह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया।

 

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