भोंपूराम खबरी, रुद्रपुर। कोरोना काल ने मानवता को हाशिए पर लाकर रख दिया है। महामारी में लॉकडाउन होने कारण जहां अधिकांश व्यापार बंद है और लोगों के समक्ष परिवारों के भरण-पोषण का संकट खड़ा हो चुका है। लेकिन ऐसे में भी शहर में मकान और दुकान स्वामियों के किराये का मीटर लगातार भाग रहा है। यह लोग किरायेदारों से किराया वसूलने के लिए दबाव बनाने से लेकर अभद्रता करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं।
बीते साल लॉकडाउन लागू होने के दौरान के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मानवता के नाते सभी किरायेदारों का किराया माफ करने की अपील मकान-मालिकों से की थी। अधिकांश लोगों ने प्रधानमंत्री की बात को मानते हुए व मानवता के नाते अपने किरायेदारों का किराया माफ़ किया था। आशा की जा रही थी कि इस बार लागू हुए लॉकडाउन में भी यह प्रवृत्ति कायम रहेगी। लेकिन मकान-मालिकों के अपने लालच के घड़े भरने की लालसा के चलते धरातल पर यह फलीभूत होता नहीं दिख रहा है।
शहर के विभिन्न मोहल्लों में रहने वाले मेहनतकश मजदूर, घरों में काम करने वाली महिलाएं, दुकानों के कर्मचारी आदि हर दिन या महीने भर कमाकर अपने खर्च चलाने वाले किरायेदारों के लिए यह संकट अब बहुत बड़ा बन गया है। इस दौर में खाने के लिए बमुश्किल जुगाड़ कर पाने वाले यह लोग अब मकान-मालिकों के भय तले जी रहे हैं। किरायेदारों का कहना है कि इस करोना काल मे हम अपना और परिवार का पेट ही नही भर पा रहे तो किराया कैसे दे। जब इस बाबत कोरोना गाइडलाइन खंगाली गयी तो उसमें ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया जिससे किरायेदारों को कही से कोई राहत मिल सके। अब शासन व प्रशासन को चाहिए कि मकान-मालिक से किरायेदारों को कुछ समय के लिए किराये से राहत दिलाने के लिए सकारात्मक पहल करे।
घरों में काम करती थी। कोरोना के कारण सभी ने घर आने से मना कर दिया। हालाँकि उन्होंने राशन की सहायता की है मगर किराया देने के लिए पैसे नहीं हैं। मकान-मालिक बहुत परेशान कर रहा है। पुलिस को शिकायत करने पर सामान बाहर फेंकने की धमकी देता है। —– लाली देवी, गृह सेविका गृह
होटल में काम करता था। कर्फ्यू के कारण काम बंद है। मालिक ने राशन दिया कीच राजनीतिक दलों के लोग दे गए। लेकिन कमरे का किराया तीन हजार रुपये है और उसके लिए कोई इंतजाम नहीं है। सरकार को हमारी मदद करनी चाहिए। —– राजू भंडारी,, रसोइया
कई मकान मालिकों के पास इस कोरोना काल मे किराए के अलावा आय का अन्य स्रोत नहीं है। ऐसे में उनका किराया माँगना जायज है। मगर जो संपन्न हैं वह दुकान अथवा मकान का किराया मानवता के आधार पर छोड़ सकते हैं। सुशील गावा ,,,समाजसेवी